बकरा ईद के दिन हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम कैसे आमाल करते थे
ईद उल फितर की तरह ईद उल अजहा भी हमारे लिए खुशियां लेकर आती है. ईद उल अजहा जूल्हज्ज की दसवीं तारीख को कहते हैं |इस दिन अल्लाह तबारक व ताला की बारगाह में नमाजे ईद का नजराना पेश करने के बाद हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलम की कुर्बानी की यादगार मनाते हुए मुसलमान अपने मौला के बारगाह में जानवरों की कुर्बानी भी पेश करते है |उस दिन के मामूलात के लिए भी इस्लाम ने उसूलों ज़वाबित और आदाब मूरततब फरमाए हैं|
ईद उल अजहा के दिन हुजूर ने खुत्बा दिया
हजरत बरा बिन आज़िब रदिअल्लहु ताला अन्हू से रिवायत है आप फरमाते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने ईद उल अजहा के दिन खुतबा इरशाद फरमाया . खुतबे के दौरान आप ने इरशाद फरमाया इस दिन हमें सबसे पहले नमाज पढ़नी है . नमाज पढने के बाद हम कुर्बानी करेंगे| जिस ने ऐसा किया उसने दुरुस्त किया , और जिसने नमाज से पहले कुर्बानी कर लिए तो उसने गोश्त के लिए जानवर को ज़बह किया उसका वजूब साकित नहीं हुआ|
सही बुखारी हिस्सा दो पेज 19
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयों कुर्बानी नमाजे ईद के बाद ही करनी चाहिए , जल्दबाजी की वजह से नमाजे ईद से पहले ना की जाए | जिस ने नमाज e ईद से पहले कुर्बानी कर ली उसकी कुरबानी अल्लाह तबारक व ताला की बारगाह में मकबूल नहीं होगी , बल्कि वह उसने सिर्फ गोश्त खाने के लिए जानवर जगह किया है |
नमाज से पहले कुछ ना खाया जाए
हजरत बुरैदा रजि अल्लाह ताला अनहु से रिवायत है आप फरमाते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहो ताला वसल्लम ईद उल फितर के दिन कुछ खाकर ही ईदगाह की तरफ जाते और ईद उल अजहा यानी बकरा ईद के दिन नमाज से पहले कुछ नहीं तनावुल फरमाते।
सुनन तिरमिजी हिस्सा दो पेज 426
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयों ईद उल फितर की नमाज से पहले कुछ खा कर जाना मसनून है और कुर्बानी के दिन नमाज से पहले कुछ ना खाना यह सुन्नत तरीका है| उसकी एक वजह यह भी हो सकती है क्योंकि नमाज ए ईद उल फितर कुछ ताखीर से पढ़ी जाती है और ईद उल अजहा की नमाज के बाद क्योंकि कुर्बानी करनी होती है इसलिए उसकी नमाज जल्दी पड़ी जाती है| इसलिए नमाजे ईद उल फितर से पहले कुछ खाना मसनून है और नमाज से ईद उल अजहा से पहले कुछ ना खाना मसनून है. बल्कि ईद उल अजहा के दिन कुर्बानी का गोश्त खाना बेहतर है |
लेकिन यह बात याद रखना चाहिए कि अगर हम क़ुरबानी करते वक्त तक कुछ नहीं खाते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि उस दिन हम रोजा रखते हैं , बहुत सारे हमारे भाई इस खयाल में रहते हैं कि जब तक हमारा जानवर जबह ना हो जाए तब तक हम इस दिन रोजे की हालत में होंगे | कुरबानी के दिन रोजा रखना हराम है |
ईदगाह एक रास्ते से जाना दूसरे रास्ते से वापस आना
हजरत जाबिर रजि अल्लाह ताला अनहु से रिवायत है आप फरमाते हैं ईद के दिन हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम एक रास्ते से जाते और दूसरे रास्ते से वापस आते.
सही बुखारी हिस्सा दो पेज 23
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयों ईद उल अजहा के दिन भी ईदगाह की तरफ एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आना हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम की सुन्नत है इसमें क्या हिकमत है वह अल्लाह और उसके प्यारे रसूल सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ही बेहतर जाने | बस हमें सुन्नत को अदा करने की नियत से ऐसा करना चाहिए |
कुर्बानी किस तरह से होनी चाहिए
हजरत अनस रजि अल्लाह ताला अनहु से रिवायत है आप फरमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने चितकबरे रंग के सींग वाले दो मेंढे ज़बह फरमाए | आपने उन्हें बिस्मिल्लाहही अल्लाह अकबर पढ़कर अपने हाथों से ज़बा फरमाया मैंने देखा कि आपने उनके पहलुओं पर अपने कदमे मुबारक रखकर बिस्मिल्लाह अल्लाह हू अकबर पढा|
सही बुखारी हिस्सा 7 पेज 102
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयों ईदूल अजहा के दिन हर साहिबे निसाब पर कुर्बानी करना वाजिब है | आमतौर पर घर में जो सबसे बुजुर्ग हो, लोग सिर्फ उनके नाम से कुर्बानी करते हैं और बाकी लोगों के नाम से नहीं करते | या हर साल घर के अलग-अलग फर्द के नाम से कुर्बानी की जाती है | यह दुरुस्त नहीं है जो लोग मालिके निसाब हैं उनके नाम से हर साल कुर्बानी वाजिब है | औरतों के पास खासतौर पर जेवरात इस मिकदार में होते हैं जिसकी बुनियाद पर वह मालिके निसाब हो जाती हैं ,इसलिए औरतों के नाम से भी कुर्बानी वाजिब है |
जिल हज्ज का चांद देखने के बाद हजामत ना बनवाई जाए
हजरत उम्मे सलमा रजि अल्लाह ताला अन्हा से रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जिसने जिलहज्जा का चांद देख लिया और कुर्बानी करना चाहता है वह अपने बाल न बनवाएं और अपने नाखून ना तराशे |
सुनन e तिरमिज़ी हिस्सा 3 पेज 154
मेरे प्यारे दोस्तों जिसके नाम से कुर्बानी होने वाली है उसके लिए मुस्तहब है वह जिल हज्जा का चांद देखने के बाद से कुर्बानी करने तक अपने नाखून और बदन के बाल ना तराशे बल्कि उसी तरह छोड़ दे और जब कुर्बानी हो जाए उसके बाद वह बाल और नाखून तराश सकता है|
कुर्बानी के दिन कौन सा अमल ज्यादा पसंद है
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लहु ताला अनहुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :अशरह जुलहजजा में अल्लाह तबारक व ताला के नजदीक नेक आमाल सबसे ज्यादा पसंद होते हैं . सहाबा ने अर्ज किया जिहादफी सबीलिल्लाह से भी ज्यादा ? हुजूर ने फरमाया हां , मगर यह कि कोई अपने माल लेकर निकल जाए और ना वह वापस लौटे और ना ही उसका माल |
सुनने तिरमिज़ी हिस्सा 3 फेज 121
इसी तरह हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाह ताला अन्हु से रिवायत है की हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : ज़ुल्हाज्जा में की जाने वाली इबादत अल्लाह ताला के नजदीक सबसे ज्यादा पसंदीदा होती है |ज़ुल्हाज्जा के हर दिन का रोजा 1 साल के रोजे के बराबर है | और हर रात का क़याम यानी उसमें इबादत करना शबे कद्र के क़याम के बराबर है|
सुनने तिरमिज़ी हिस्सा तीन पेज 122
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयों मखसूस अय्याम और मखसूस औकात में की जाने वाली नेकिया दूसरे अय्याम में की जाने वाली नेकियों पर फजीलत रखती है | पहली रिवायत में यह बताया गया कि अशरा e जिलहिज्जा में नेकियां करना दूसरे अय्याम में नेकियां करने के मुकाबले में ज्यादा पसंदीदा हैं | और दूसरी रिवायत में इस बात की वजाहत कर दी गई कि ज़िल्हाज्जा के अशरा में किसी एक दिन का रोजा रखना 1 साल तक रोजा रखने के बराबर है , और एक रात जाग कर इबादत करना लैलतुल क़द्र में इबादत करने के बराबर अजरो सवाब रखता है |
आप जानते हैं कि शबे क़द्र के बारे में अल्लाह ताला ने इरशाद फरमाया की शबे क़द्र हजार महीनों से बेहतर है | वह जिसने अशरा जिलहिज्जा में किसी एक रात भी जाग कर इबादत कर ली उसके लिए हजार महीनों से ज्यादा इबादत करने का सवाब है| हजार महीनों का मतलब है 83 साल से भी ज्यादा, मतलब यह हुआ कि इंसान अपनी पूरी जिंदगी में जितनी नेकी नहीं कमा सकता उतनी नेकी सिर्फ एक रात में जाग कर इबादत करने से हासिल कर सकता है | इसलिए हमें ज़िल्हाज्जा के अशरा में किसी ना किसी रात जागकर जरूर इबादत करनी चाहिए |
हुजूर की तरफ से कुर्बानी करना
हजरत अनस रजि अल्लाह ताला अनहु से रिवायत है उन्होंने कहा मैंने हजरत अली रजि अल्लाह ताला अन्हु को देखा कि आप दो जानवर ज़बह कर रहे हैं मैंने पूछा यह क्या है? तो आपने इरशाद फरमाया कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने मुझे अपनी जानिब से कुर्बानी करने की वसीयत फरमाई थी तो मैं आपके जानिब से कुर्बानी कर रहा हूं |
सुनन अबू दाऊद के साथ तीन पेज 94
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयों अगर हमें अल्लाह ताला ने साहिबे हैसियत यानी मालदार बनाया है और बहुत ज्यादा अल्लाह ने अता फ़रमाया है. तो हमारे घर के जिन लोगों पर कुर्बानी वाजिब है उनके नामों से करने के बाद हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के नाम से भी कुर्बानी करना चाहिए , कि नबी ए करीम सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने अपनी ज़ाहिरी हयात में अपनी उम्मत के नाम से कुर्बानी फरमाई है | आप हम गुनहगारों का इस कदर खयाल फरमाया करते थे तो हमें भी चाहिए कि आपके नाम से कुर्बानी किया करें |
1 thought on “Qurbani ki ahmiyat o fazilat | Qurbani kis par wajib hai”