kya baap ki mojoodgi me bete par qurbani farz hai? Qurbani ke masail

कुर्बानी के मसाइल | क्या बाप की मौजूदगी में बेटे पर कुर्बानी फर्ज है|Qurbani ke masail

सवाल यह है कि क्या अगर बाप मौजूद हो तो बेटे पर भी कुर्बानी करना जरूरी है ? जबकि बाप अपनी रक़म यानी माल अगर बेटों में तक्सीम करें तो सारे बेटे निसाब को पहुंच जाएंगे , तो क्या ऐसी सूरत में बेटों को अपनी अपनी तरफ से भी कुर्बानी करना जरूरी है?

जवाब :

यह मसाला तफसील तलब है जिसकी यहाँ गुंजाइश नहीं ,लेकिन मुख़्तसर आप के सामने बयान किया जा रहा है : बाप अगर लाखों रुपए का मालिक हो तो उसकी वजह से बेटे मालिक e निसाब ना होंगे . जब वह रुपए उनके मिल्क में नहीं तो यह मालिक कैसे होंगे . हां खुद उनकी मिल्कियत में जो रुपए हो या जेवर हो और सब मिलकर ₹56 भर अंग्रेजी के दाम को पहुंचते हो यानी शरई निसब को पहुँचते हों ,या उससे ज्यादा होते हो तो वह मालिक e निसाब होंगे और उन पर कुर्बानी वाजिब होगी .

आजकल आमतौर से बड़े और औसत घरानों के नौजवान इस हैसियत के होते हैं की बाप अगर बेटों के साथ रहता हो और सब अपनी अपनी कमाई के मालिक हैं और मालिक e निसाब होने की शर्त पर सब पर कुर्बानी वाजिब है . यूं ही बेटे मुलाजमत करते हैं तो वह भी कमाई के मालिक हैं और बशर्ते मजकूर उन पर कुर्बानी वाजिब है . मामला मुशतबह हो तो ओला और बेहतर यह है कि अगर इस्तिता’अत हो तो सब की तरफ से कुर्बानी कर दी जाए.

क्या खसी किए हुए बकरे की कुर्बानी करना दुरुस्त है|Qurbani ke masail

एक आदमी कहता है कि नसबंदी किया हुआ बकरा उस की कुर्बानी करना दुरुस्त नहीं है जबकि दूसरे का कहना है कि अगर नसबंदी किया हुआ बकरा हो तो उसकी कुर्बानी दुरुस्त होती है . इसलिए आप कुरान और हदीस की रोशनी में जवाब इनायत कर दें ताकि आवाम गलत काम से रुक जाए.

जवाब:

खसीकरना इंसान में ऐब हैं  जानवरों बिल्खुसूस बकरे में नहीं इस वजह से उसका गोश्त अच्छा हो जाता है . खुद जानवर खूबसूरत और मोटा होता है उसकी कीमत बढ़ जाती है . यहां तक कि उसकी खाल भी गैर e खसी  की बनिस्बत कीमत में ज्यादा हो जाती है लिहाजा उसके कुर्बानी करना बिला शुबहा जायज है.
हदीस शरीफ में है कि हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने ज़बह के दिन यानी क़ुरबानी के दिन २ मेंढे खसी  किए हुए चितकबरे रंग के ज़बह किये . तो इस हदीस की रोशनी में खसी की क़ुरबानी करना दुरस्त है .

मसनद अहमद बिन हंबल , अबू दाऊद

लिहाज़ा जिस ने यह कहा की खसी किये हुए बकरे की कुरबानी करना सही है उसकी बात सही है , और जिस ने यह कहा कि खसी बकरे की कुर्बानी करना सही नहीं उसकी बात गलत है . लिहाजा उसको अपने गलत बात से तौबा करना चाहिए कि बगैर इलम के  फतवा देना हराम और गुनाह का काम है.

गूंगे गाय या बकरी की कुर्बानी करना जायज है या नहीं | Qurbani ke masail

गूंगे जानवर की कुर्बानी जायज है . चाहे वह गाय हो या बकरी या और कोई जानवर . जानवर में बोलना मुनाफे मकसूदा नहीं बल्कि सच यह है कि बोलना मुनाफा से है ही नहीं . ना मुनाफा e मकसूदा से जैसे आँख वगैरह . और न मुनाफा e गैर मकसूदा से जैसे सींग वगैरह . यही वजह है कि कुदरत ने उन्हें बोलने से महफूज रखा है . और फुकहा e किराम ने उसे ऐब में शुमार नहीं फरमाया ,अगर यह ऐब होता तो फुकहा उसे जिक्र फरमाते .

वाज़ेह  हो कि गूंगे से मुराद ऐसा जानवर है जिसकी जुबान सलामत ना हो तो उसमें तफसील है . पैदाइश के वक्त से ही वह जुबान से महरूम है और वह बकरी के जींस से  है तो कुर्बानी सही है , और अगर गाय या ऊँट की जिनस से है तो कुर्बानी सही नहीं है . कि बड़े जानवर जबान से चरते और अपनी गिज़ा लेते हैं और छोटे जानवर दांत से चरते और अपनी गिज़ा लेते हैं.


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