हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के मुतालिक कैसा अकीदा रखना चाहिए
नबी उस इंसान को कहते हैं जिसके पास अल्लाह ताला ने अपने बंदों को सीधे रास्ते पर चलाने के लिए वही भेजी हो .
नबियों के दर्जे मुख्तलिफ हैं , यानी एक दूसरे पर फजीलत रखता है . और तमाम नबियों में सबसे अफजल हमारे आका सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम हैं .
जितने भी अंबिया इकराम इस दुनिया में तशरीफ लाए सबको अल्लाह ने किसी खास कौम की तरफ नबी बनाकर भेजा , लेकिन हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम को तमाम इंसानों, जिन्नात, फरिश्तों ,हवा ,नबातात और जमादात सबके लिए नबी बनाकर भेजा .
सिर्फ इंसानों ही पर नहीं बल्कि तमाम मखलूक पर हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम को अफ्हैज़लियत हासिल है .
हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम अल्लाह के आखिरी नबी हैं यानी अल्लाह ताला ने आप पर नबूवत को खत्म फरमा दिया है . अब हुजूर के जमाने में या आप के बाद कोई नया नबी नहीं हो सकता . जो हुजूर के जमाने में या हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के बाद किसी को नबी माने या किसी नबी का होना जायज जाने वह काफिर है .
हुजूर सल्लल्लाहो ताला वसल्लम तमाम मखलुकात में सबसे अफजल हैं .
दूसरों को अलग-अलग जो कमालात अता हुए हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम में अल्लाह ताला ने उन तमाम कमालात को जमा करवा दिया| और उनके अलावा हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को वह कमालाता फरमाए जिनमें और किसी का हिस्सा नहीं .
किसी का हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के मिसल होना यानी आप की तरह होना यह मुहाल है , जो किसी खास सिफत में किसी को हुजूर के मिसल बताएं वह गुमराह या काफिर है |
हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम को अल्लाह ताला ने अपना महबूबा अकबर बनाया कि तमाम मखलूक अल्लाह की रजा चाहती है और अल्लाह हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के रजा चाहता है .
हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम की ख़ुसूसियात में से मेराज भी है
रात के एक बहुत ही कम वक्त में मस्जिद e हराम से मस्जिदे अक्सा और वहां से सातवें आसमान और अर्श , कुर्सी बल्कि अर्श से भी ऊपर अपने हकीकी जिस्म के साथ तशरीफ ले गए . और अल्लाह का वह क़ुरब आपको हासिल हुआ कि किसी इंसान या फरिश्ते को ना कभी हासिल हुआ है और ना कभी होगा .
मेराज की रात हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने अपने माथे की आंखों से अल्लाह के जमाल को देखा और अल्लाह के कलाम को बिलावासता सुना .
शिफ़ा’अत e कुबरा का अकीदा
कयामत के दिन शिफ़ा’अत e कुबरा हुजूर सल्लल्लाहो ताला वसल्लम के खसाईस में से है यानी जब तक आप शिफ़ा’अत का दरवाजा ना खोलेंगे कोई शख्स शिफ़ा’अत ना कर सकेगा बल्कि हकीकत यह है कि दूसरे लोग हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के दरबार में शिफ़ा’अत लाएंगे . और हुजूर सल्लल्लाहो ताला वसल्लम अल्लाह की बारगाह में शिफ़ा’अत ले करके जाएंगे .
यह शिफ़ा’अत e कुबरा मोमिन , काफिर ,नेक ,गुनहगार सबके लिए है . कि मैदान ए महशर में जब सब लोग हिसाब के इंतजार में होंगे और वह वक्त बहुत ही सख्ती का होगा | लोग तमन्ना करेंगे कि हिसाब जल्द हो जाए , चाहे जन्नत मिले या जहन्नम ، सब लोग इस बला से निजात हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि ताला वसल्लम के सदके में मिलेगी |
इस शिफ़ा’अत पर तमाम अवव्लीन और आखरीन ,मुवाफिकीन ,मुखालिफीन , मोमिनीन और काफिरींन सब हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के हमद करेंगे इसी का नाम मकामें महमूद है |
शिफ़ा’अत की और भी किसमें हैं , मसलन बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्हें बेहिसाब जन्नत में दाखिल फरमाएंगे, जिनमें 4 अरब 90 करोड़ की तादाद मालूम है बल्कि उससे भी ज्यादा | बहुत से वह होंगे जिनका हिसाब हो चुका होगा और जहन्नम के मुस्तहीक होंगे उनको जहन्नम से हुजूर बचा लेंगे | बहुत से लोग वह होंगे कि जिनके शिफ़ा’अत फरमा कर जहन्नम से निकाल लेंगे | बहुत सारे लोगों के दर्जा बुलंद फरमाएंगे | और बहुत सारे लोगों के आजाब में कमी करवाएंगे |
हुज़ूर का अदब और आप की ताजीम
हमारे आका हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम की मोहब्बत यह ईमान की असल है बल्कि ईमान उस मोहब्बत का नाम है . जब तक हुजूर की मोहब्बत मां-बाप, औलाद, और तमाम जहां से ज्यादा ना हो आदमी मुसलमान नहीं हो सकता |
हुजूर सल्लल्लाहो ताला वसल्लम की इता’अत और फरमाबरदारी करना अल्लाह की फरमाबरदारी करना है . यहां तक कि अगर कोई शख्स फर्ज नमाज़ पढ़ रहा हो और हुजूर उसे याद फरमाएं , तो फौरन जवाब दे और आपके बारगांह में हाजिर हो जाए , और यह शख्श कितनी ही देर तक हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम से गुफ्तगू करते रहे उसके नमाज फासिद न होगी बल्कि वह उसी तरह नमाज ही में मौजूद रहेगा .
हम सब के सरदार हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम की ताज़ीम इमान का हिस्सा है . आपकी ताजीम और तौकीर जिस तरह उस वक्त फ़र्ज़ थी जब आप दुनिया में जाहिरी निगाहों के सामने मौजूद थे अब भी उसी तरह फ़र्ज़ , लाजिम और जरूरी है |
जब हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम का जिक्र आए तो मुकम्मल खुशू , खुज़ू और इनकिसारी के साथ बा अदब होकर सुने . और हुजूर का नाम सुनते ही दरूद शरीफ पढ़ना वाजिब है |
हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के किसी कौल , फेल या अमल और हालत को हिकारत की नजर से देखना कुफ्र है .
हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम अल्लाह के नायब e मुतलक हैं | सारी दुनिया हुजूर सल्लल्लाहो ताला वसल्लम के तसर्मेंरुफ़ में है जो चाहे करें | जिसे जो चाहे दें , जिससे जो चाहे वापस ले ले |
शरई अहकाम हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के कब्जे में हैं कि जिस पर जो चाहे हराम फरमा दें और जिसके लिए जो चाहे हलाल कर दें . और जो फर्ज चाहे माफ फरमा दे |
हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम तमाम नबियों के नबी हैं . और तमाम नबी हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम के उम्मती हैं , सब ने अपने जमाने में हुजूर सल्लल्लाहो ताला वसल्लम के नयाबत में काम किया है |
तमाम अंबियाए कराम से जो लग्ज़िशें हुई हैं उनमें हजारों हिकमत हैं | मिसाल के तौर पर हजरत आदम अलैहिस्सलाम की लग्ज़िशे पैगंबरना ही की बरकत है कि अगर वह सादिर ना होती तो आप जन्नत से ना उतरते, दुनिया आबाद ना होती ,ना किताबें नाजिल होती, ना रसूला आते . लिहाजा तिलावते कुरान और रिवायत ए हदीस के अलावा अंबियाऐ कराम का जिक्र सख्त हराम है |
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