hajj kab farz hua | हज का बयान | Hajj ki fazilat
हज इस्लाम का एक अहम फ़रीज़ा है जो उम्मते मोहम्मदिया के हर फर्द पर जो वहां जाने की ताक़त रखता हो उस पर फ़र्ज़ है . हज ९ हिजरी में फ़र्ज़ किया गया , हज की फर्ज़िय्यत कतई और यकीनी है | जी उस्जे फ़र्ज़ होने का इनकार करे वो काफ़िर है .
कुरान e करीम में अल्लाह ताला का इरशाद है ( वालिल्लाही अलान्नासी हिज्जुल बेती मनिस ताता’अ इलैही सबीला . वमन कफारा फ इन्ना अल्लाहा गन्य्युं अनिल आलमीन ) और अल्लाह के लिए लोगों पर उस घर का हाज करना फ़र्ज़ है जो वहां तक जाने की इस्तिता;अत रखता हो . और जो मुनकिर हो तो अल्लाह सरे जहाँ के लोगों से बे नियाज़ है |
( कन्जुल इमान ,पारा ४ ,रुकू १ )
हजरत अल्लामा सदरुल अफाज़िल फरमाते हैं इस आयात में हज की फर्ज़ियत का बयां है . और इस बात का की उसके लिए हज फ़र्ज़ है जो वहां तक जाने की इस्तिता’अत रखता हो .
हदीस शरीफ में हमारे आका सल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इसकी तफसीर जादो ओ राहिला से फर्मी है . जाद यानि खाने पीने का इन्तिज़ाम इस क़दर होना चाहिए की जा कर वापस आने तक के लिए काफी हो . और ये वापसी तक अहल ओ आयल के खाने पीने के अलावा होना चाहिए . रास्ते का पुर अमन होना भी ज़रूरी है , क्यंकि उसके बगैर इस्तिता’अत नहीं होती |
( कन्जुल इमान ,पारा १७ ,रुकू ११ )
हज की फर्ज़िय्यत का एलान
अल्लाह ता’ला ने अपने खलील हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को मुखाताब करते हुए इरशाद फ़रमाया .
( و اذن فی الناس بالحج یاتوک رجالا وعلی کل ضامر یاتین من کج فج عمیق
और लोगों में हज की आम निदा कर दो वो तुम्हारे पास हाज़िर होंगे पैदल और दुबली उतनी पर की हर दूर की राह से आती हैं .
(कन्जुल इमान ,पारा १७ , रुकू 11 )
मस्जिद e हरम में नमाज़ का सवाब
हजरत अनस बिन मालिक रदिअल्लहु अन्हु फरमाते हैं की हुज़ूर सल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :माजिद e हराम में एक नमाज़ एक लाख नमाज़ों के बराबर है .
( मिश्कात शरीफ )
हज अहादीस की रोशनी में
हजरत अबू हुरैरह रदिअल्लहु अन्हु से रिवायत है की हुज़ूर सल्लाहू अलैहि वसल्लम से पुछा गया की कोनसा अमल सब से अफज़ल है ? तो आप ने फ़रमाया : अल्लाह ताला और उसके रसूल पर ईमान लाना . अर्ज़ किया गया फिर कोनसा अमल ? आप ने फ़रमाया : राह e खुदा में जिहाद करना . अर्ज़ किया गया फिर कोनसा अमॉल पसंद है ? आप ने फ़रमाया : हज म्ब्रूर .
( बुखारी जिल्द १ , पेज २०६ )
हाजी गुनाहों से पाक हो जाता है
हजरत अबू हुरैरह रदिअल्लहु अन्धु से मरवि है की की हुज़ूर को ये फरमाते सुना की : जिस ने हज किया और उसने न बे हूदगी की न फिस्क ओ फुजूर मु मुब्तला हुआ तो वो हज से इस तरह लौटेगा जैसे की उसको उसकी माँ ने अभी जनम दिया है . यानि व गुनाहों से पाक हो जायेगा |
( बुखारी जिल्द १ , पेज २०६ )
इस हदीस शरीफ से हज की अहमियत का पता चलता है की हज में अगर कोई लड़ाई झगड़ा और गुनाह से बचे तो अल्लाह उसको तमाम गुनाहों से पाक फार्म देता है , जसिसे की छोटा बच्चा जो पैदा हुआ हो उसके ऊपर कोई गुनाह नहीं होता | वैसे ह हज e मब्रूर की सा’आदतों से मालामाल होने वाले को बना दिया जाता है . अल्लाह हम सब को हज की तौफीक नसीब फरमाए |
हाजी जन्नती है | Hajj ki fazilat
हजरत अबू हुरैरह रदिअल्लहु अन्धु से मरवि है की की हुज़ूर सल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया : एक उमरा दूसरे उमरा तक होने वाले गुनाहों का कफ्फारा बन जाता है | और हज का सवाब सिवाय जन्नत के कुछ नहीं |
हजरत आयशा सिद्दीका रदिअल्लहु ता’ला अन्हुमा से मर्वी है की हुज़ूर सल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया : कोई दिन ऐसा नहीं है जिस में अल्लाह ता’ला यौम e अरफा की निस्बत ज्यादा बन्दों को जहन्नम से आज़ाद करता हो |
यानि अरफा का मक़ाम बहुत बुलंद ओ बाला है . इस दिन तमाम बन्दे १ ही लिबास , एक ही की जानिब तवज्जोह और गुनाहों पर आंसूं , उसकी रहमत को जोश में लेट हैं | और वो करीम अपने बन्दों को जहन्नम से आज़ाद फार्म देता है |
हज के दौरान इन्तिकाल हो जाये तो हिसाब न होगा
उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रदिअल्लहु अंह से मर्वी है की हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया : जो कोई हरम e पाक यानी मक्का या मदीना में फौत हो जाये तो न वो हिसाब के लिए पेश किया जायेगा और न उस से हिसाब लिया जायेगा . और उस से कहा जायेगा की जन्नत में दाखिल हो |
( दार e क़ुतनी )
हज और उमरा करने वाले शिफा’अत करेंगे
हदीस शरीफ में है की हुज़ूर रहमत e आलम सल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया : हज करने वाले और उमरा करने वाले अल्लाह ताला के वफद और उसके मेहमान हैं | अगर वो उस से मांगते हैं तो वो उन्हें अत फरमाता है . और उस से मगफिरत चाहते हैं तो वो उनकी मगफिरत फरमाता है . और अगर शिफारिश करते हैं तो उनकी शिफारिश कुबूल की जाती है |
( अहयाउल उलूम )
वजू की फ़ज़ीलत | वजू नमाज़ की कुंजी है | wazu ki fazilat
Juma ke din durood shareef padhne ki fazilat
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